ख्रीस्त राजा का पर्व : हिंदी प्रवचन , 20 Nov, 2019

आज हम राजाधिराज प्रभु येसु का माहोत्सव मना रहे हैं आज के दूसरे पाठ में हमने सुना कि प्रभु येसु “अदृष्य ईश्वर के प्रतिरूप तथा समस्त सृष्टी के पहलौटे हैं, क्योंकि उन्हीं के द्वारा सब कुछ की सृष्टी हुई है… वह समस्त सृष्टी के पहले से विद्यमान है और समस्त सृष्टी उन में ही टीकी हुई है।…इसलिए वह सभी बातों में सर्वश्रेठ है। ईश्वर ने चाहा कि उनमें सब प्रकार की परिपूर्णता है” (कोलो 1:15-18)। इसलिए प्रभु येसु एक सर्वश्रेष्ठ व सर्वोपरी राजा है। पर वे कहते हैं – “मेरा राज्य इस संसार का नहीं है। यदि मेरा राज्य इस संसार का होता तो मेरे अनुयायी लडते और मैं यहूदियों के हवाले नहीं किया जाता। परन्तु मेरा राज्य यहाँ का नहीं है’’ (योहन 18:36)। यह साफ तौर पर ज़ाहिर है कि येसु का राजत्व इस संसार के लिए नहीं है। वे दुनिया के सब राजाओं से भिन्न हैं। उनका राज-मुकुट काँटों का था; जो राजकीय वस्त्र उन्हें पहनाया गया था, वो मज़ाक व बेइज्जती का प्रतीक लाल चौगा था; उनका राजदंड था सरकंडा जिसे दुशमनों ने उनके ही सिर मारा था। ख्रीस्त ने, न तो दुनिया के जाने-माने राजाओं की श्रेणी में खुद को गिने जाने का दावा किया और न ही किसी राजा की बराबरी करना चाहा। उन्होंने हर प्रकार के सांसारिक वैभव व शानो-शौकत को ठुकरा दिया। उनका जन्म एक छोटी सी गौशाला में हुआ क्योंकि उनके लिए सराय में जगह नहीं थी (लुक 2:7), उनके सार्वजनिक जीवन की शुरूआत के पहले जब शैतान उन्हें ‘‘अत्यंत ऊँचे पहाड पर ले गया और संसार के सभी राज्य और वैभव दिखला कर बोला, ‘यदि आप दंडवत कर मेरी आराधना करें, तो मैं आप को यह सब दे दूँगा।’ येसु ने उत्तर दिया, ‘‘हट जा शैतान क्योँकि लिखा है – अपने प्रभु ईश्वर की आराधना करो और केवल उसी की सेवा करो’’ (मत्ती 4:8-10)। आज के सुसमाचार में हमने सुना कि जब सैनिकों ने उनकी हंसी उडाते हुए उनसे कहा है – ‘‘यदि तू यहूदियों का राजा है तो अपने को बचा।’’ पर प्रभु ने वहां पर भी अपने निजी महिमा दिखाने के लिए अपनी शक्ति का प्रदर्शन नहीं किया।

जब हमारे प्रभु ने पाँच रोटियों और दो मछलियों से पाँच हज़ार लोगों को भोजन कराया, तो लोग उन्हें राजा बनाना चाहते थे। लेकिन प्रभु येसु राजा बनने से इनकार कर देते हैं क्योंकि वे उन्हें सांसारिक राजा बनाना चाहते थे (योहन 6:15)। उनका राज्य इस दुनिया के राजायों जैसा धन-दौलत, शक्ति, सेना, साम्राज्य, ज़मीन-जायदाद वाला राज्य नहीं है। वे कहते हैं मेरा राज्य इस दुनिया का नहीं है (योहन 18:36)। जिस राज्य की प्रभु येसु बात कर रहे थे उसे न तो पिलातुस, न यहूदी और दुनिया की कोई भी ताकत मिटा सकती है। उनका राज्य विश्वासियों के दिलों में स्थापित किया गया है। सम्राटों पर सम्राट पैदा हुए व प्रभु येसु को लोगों के दिलों के सिहासन से हटाने की नाकामियाब कोशिश की; कई प्रकार की भ्रांत व भटकाने वाली शिक्षायें व सिद्धांत आये, व राजनैतिक शक्तियों व असामाजिक ताकतों ने प्रभु येसु को लोगों के दिलों से दूर करने की लाखों कोशिश की व आज तक कोशिश की जा रही हैं पर सब व्यर्थ है। पिछले कुछ सालों से इस्लामिक स्टेट के आतंकियों ने कई मासूम व निर्दोष ईसाईयों का संहार किया; हमारे देश में ओडिशा के कंधमाल जिले में हजारों ईसाईयों का खून बहाया गया, परन्तु कोई भी लोगों के दिलों से येसु को अलग नहीं कर सके। और कभी कर भी नहीं पायेंगे। क्योंकि प्रभु येसु वह राजा है जिनके पास सर्वोच्च शक्ति है। वे सारे ब्रह्माण्ड के राजा है। संत मत्ती के सुसमाचार 28:18 में प्रभु ने कहा है – ‘‘मुझे स्वर्ग में और पृथ्वी पर पूरा अधिकार मिला है।’’

प्रभु एक ऐसे राज्य के राजा हैं जो इस संसार का नहीं है। उनका राज्य स्वर्ग का राज्य है। ये राज्य हम मनुष्यों की आसान पहुँच से दूर था। इसलिए हमारे राजा स्वयं इसे हमारे करीब लेकर आये हैं। प्रभु के आगमन पर संत योहन बपतिस्ता कहते हैं – ‘‘समय पूरा हो चुका है। ईश्वर का राज्य निकट आ गया है’ (मारकुस 1:15)। प्रभु येसु के इस धरा पर आगमन के साथ ईश्वर का राज्य हमारे निकट, हमारे बीच आ गया। और इसमें प्रवेश करने के लिए वचन कहता है – ‘‘पश्चाताप करो और सुसमाचार में विश्वास करो’’ (मारकुस 1:15)। यदि हमें ख्रीस्त राजा की प्रजा बनना है, शैतान व उसके पाप व अंधकार के राज्य तथा उसकी शक्तियों से छुटकरा पाना है तो हमें हमारे गुनाहों पर पश्चताप करना होगा व सुसमाचार में विश्वास करना होगा, स्वयं को ईश्वर के आत्मा व उसके सामर्थ्य के सम्मुख समर्पित करना होगा। ईश्वर के राज्य की स्थापना करने का आधार है इन्सान का ईश्वर से मेल-मिलाप कराना। उस सदियों पुराने रिश्ते को पुनः जोडना जिसे हमारे आदि माता-पिता के पाप के द्वारा तोड दिया गया था। इस मेल-मिलाप का जिम्मा हमारे प्रभु येसु, हमारे राजा ने अपने ऊपर ले लिया है। उन्होंने अपने दुःखभोग, मरण एवं पुनरूत्थान द्वारा पिता से हमारा मेल कराया है। प्रभु येसु हमारे लिए क्रूस पर इसलिए मरे कि शैतान के राज्य का अंत हो जाये और प्रभु हम सब पर, हमारे दिलों पर हमेशा शासन करते रहें। बपतिस्मा में प्रभु येसु को धारण करके हम ज्योति की संतान बन गये हैं संत पौलुस हमसे कहते हैं ‘‘भाईयों आप लोग अंधकार में नहीं हैं … आप सब ज्योति की संतान है,…हम रात या अंधकार के नहीं हैं’’ (1 थेस. 5:4)। अतः यदि हम ख्रीस्त राजा की प्रजा बन गये हैं, तो हम सब का ये फर्ज़ बनता है, कि हम उसके राज्य को फैलायें।

आज का यह पर्व ‘ख्रीस्त राजा की जय!‘ ‘प्रभु हमारा राजा है!‘ आदि नारे लगाने व गीत गाने भर तक सीमित नहीं रहना चाहिए। प्रभु आज हमें हमारी आध्यात्मिक निंद से जगाना चाहते हैं। प्रभु हमें अंधकार की शक्तियों से लडने को कहते हैं। प्रभु कहते हैं – ‘‘आप संयम रखें और जागते रहें। आपका शत्रु, शैतान, दहाडते हुवे सिंह की तरह विचरता है और ढूँढता रहता है कि किसे फाड खाये। आप विश्वास में दृढ़ रहकर उसका सामना करें’’ (1 पेत्रुस 5:8)। क्योंकि हम देखते हैं कि आज शैतान विभिन्न रूपों में अपने राज्य का विस्तार करते जा रहा है। किसी भी दिन का अखबार उठा कर देख लिजिए 70 से 80 प्रतिषत खबरें शैतान के राज्य से ताल्लुक रखती हैं – कहीं लडाई तो कहीं दंगे, कहीं बलात्कार तो कहीं हत्या, कहीं आतंकी हमला तो कहीं नरसंहार, कहीं चोरी तो कहीं धर्म के नाम पर खून-खराबा, कहीं ठगबाजी तो कहीं राजनैतिक सत्ता के लिए बेईमानी, धोखाधडी व झूठ फरेब। शैतान धीरे-धीरे अपने वर्चस्व, व अपने राज्य का विस्तार करते जा रहा है। उसके लुभावने प्रलोभनों से वह अधिक से अधिक लोगों को अपनी ओर खींच रहा है। इसलिए प्रभु ने हमें अपने राज्य की एक निष्क्रिय प्रजा बनने के लिए नहीं बुलाया है, परन्तु हम सब को एक सक्रिय सैनिक बनकर शैतान के विरूद्ध लडने के लिए बुलाया है। प्रभु का वचन कहता है – ‘‘आप लोग प्रभु से और उसके अपार सामर्थ्य से बल ग्रहण करें, आप ईश्वर के अस्त्र-सस्त्र धारण करें, जिससे आप शैतान की धूर्तता का सामना करने में समर्थ हों . . . और अन्त तक अपना कर्तव्य पूरा कर विजय प्राप्त करें’’ (एफे. 6:10-13) शैतान का सामना करने उसके राज्य पर विजय पाने के लिए हमें लाठी, डंडे, तलवार, बंदुक, व गोला-बारूद आदि की ज़रूरत नहीं। हमें ईश्वर के अस्त्र-सस्त्रों को धारण करने की ज़रूरत है। और ये अस्त्र-सस्त्र क्या हैं? संत पौलुस हमें बतलाते हैं ईश्वर के अस्त्र-सस्त्र हैं – सत्य का कमरबंद, धार्मिकता का कवच, शान्ति व सुसमाचार के जूते, विश्वास की ढाल, मुक्ति का टोप व आत्मा की तलवार अर्थात ईश वचन।

हमारे दिलों के राजा आज हमारे दिलों के द्वार पर आकर खडे होकर कह रहे हैं – ‘‘मैं द्वार के सामने खडा हो कर खटखटातो हूँ। यदि कोई मेरी वाणी सुन कर द्वार खोलेगा, तो मैं उसके यहाँ आ कर उसके साथ भोजन करूंगा और वह मेरे साथ’’ (प्रकाशना 3:20)। प्रभु हमारे दिलों में जबरदस्ती करके नहीं आते, जब तक हम हमारे दिलों को उनके लिए नहीं खोलेंगे वे अंदर नहीं आयेंगे। हमारे दिलों का द्वार खोलने के लिए हमें, सबसे पहले सारी बूरी बातों, बूरे विचारों, व बूरी भावनाओं को हमारे दिलों से दूर करना होगा और उनकी जगह दुसरों के प्रति प्रेम, दया, करूणा, क्षमा व भाईचारी की भावनाओं से हमारे दिलों को सुसज्जित करना होगा। तभी हमारे दिलों के राजा प्रभु येसु ख्रीस्त हमारे भीतर आकर हमारे हृदयों के सिंहासन पर विराजमान होंगे और तब हम सच्चे अर्थों में कह पायेंगे कि ‘‘वह प्रभुओं का प्रभु और राजाओं का राजा है’’ (प्रकाशना 17:14)। आमेन।

A Reflection on the Last Day

क्या  दुनिया का अंत आप में खौफ पैदा करता है?

आज के तीनों पाठों में हम अंत के बारे में सुनते हैं। पवित्र धर्मग्रंथ बाइबल हमें बताता है कि इस दुनिया का अंत होगा। और अंतिम दिनों में हमें विचलित करने वाली कई घटनायें घटेगी। हमारे सेमिनारी जीवन में एक पूरा साल सिर्फ अध्यात्मिकता के लिए होता है जिसमें हम सालभर बाइबल के गहन पठन, मनन चिंतन प्रार्थना व त्याग तपस्या में बिताते हैं। इसी के तहत, मैं अपने साथियों के साथ वर्ष 2011-12 में आद्यात्मिक साधना केंद्र रिसदा, बिलासपुर में था। और शायद आप लोगों को याद होगा कि उन दिनों 2012 में दुनिया के अंत होने की एक अपवाह फैली थी। जिसे टीवी, अखबार व सोशल मिडिया ने भी बहुत जोर-शोर से उछाला था। मैं वास्तव में इस प्रकार की बातों पर न तो विश्वास करता हूँ और न ही इन्हें अधिक महत्व देता हूँ। पर उस साल हुआ यूँ कि 31 दिसम्बर मध्य रात्री की मिस्सा के बाद बारिश शुरू हुई, इसलिए मिस्सा के तुरन्त बाद हम सब जाकर सो गये। हम जाकर सोये ही थे कि इतनी तेज हवा चलने लगी कि कई खडकी दरवाजे जोर-जोर से टकराने लगे। कुछ खिडिकियों के काँच भी टूट गये। बाहर झाँककर देखा तो बडे-बडे ओले गिर रहे थे। मुझे ये सब देखकर डर लगने लगा, मैं सोचने लगा कि कहीं जो भविष्यवाणी की गयी थी वो सही तो नहीं हो रही है। लेकिन थोडे समय बाद सब कुछ सामान्य हो गया। आज जब मैं उस समय के बारे में सोचता हूँ तो स्वयं से पूछता हूँ कि मुझे आखिर डर किस बात का लग रहा था। मरने का? मरना तो मुझे एक न एक दिन है ही। तो फिर डर किस बात का था? मुझे डर इस बात का था कि मैं तैयार नहीं था। मैं मरने के लिए तैयार नहीं था। मुझे यह भय सता रहा था कि अगर मैं उस घडी मर जाता तो क्या मैं स्वर्ग पहूँच पाता? क्या मैं प्रभु के न्याय-सिंहासन के सामने खडे होकर खुद को निर्दोष साबित करने की स्थिति में था? वो दिन भले ही मेरे जीवन का अंतिम दिन नहीं था पर मेरे अंतिम दिन के बारे में मुझे कुछ सिखा गया।

आज के पहले पाठ में प्रभु का वचन कहता है- ‘‘वह दिन उन्हें भस्म कर देगा। उनका न तो डंठल रह जायेगा और न जड ही।’’ वहीं प्रभु येसु आज के सुसमाचार में कहते हैं – ‘‘राष्ट के विरूद्ध,राष्ट उठ खडा होगा, … भारी भूकम्प होंगे; जहाँ-तहाँ महामारी तथा अकाल पडेगा। आतंकित करने वाले दृष्य दिखाई देंगे।’’ कुल मिलाकर अंत में एक भयंकर तबाही का मंज़र होगा। अंत के बारे में ये सारी बातें एक सामन्य व्यक्ति को बहुत विचलित कर सकती हैं। परन्तु इन सब भयभीत करने वाली बातों के बाद प्रभु येसु हमें एक बहुत ही सांत्वना भरी बात कहते हैं – “फिर भी तुम्हारे सिर का बाल भी बाँका नहीं होगा। अपने धैर्य से तुम अपनी आत्माओं को बचा लोगे”। कितनी सुन्दर बात प्रभु ने हम से कही है कि इतनी सारी तबाही के बाद भी हमारे सिर का बाल भी बाँका नहीं होगा। आज के पहले पाठ में भी प्रभु ने कहा है – “किंतु तुम जो मुझ पर श्रद्धा रखते हो, तुम्हारे ऊपर धर्म के सूर्य का उदय होगा और उसकी किरणें तुम्हें स्वास्थ्य प्रदान करेंगी। तब तुम उसी प्रकार उछलोगे, जैसे बछडे बाडे से निकल कर उछलने कूदने लगते हैं।“

हम पर, जो उनपर श्रद्धा रखते हैं प्रभु यह कृपा करेंगे और हमें अपने सूर्य जैसे स्वर्गिक प्रकाश में ले जायेंगे। स्वर्गिक आनन्द की तुलना यहाँ बाडे से बाहर निकलने पर मस्ती में उछलते बछडे से की गई है। जिसने अपने बाडे से बाहर निकले बछडे या फिर रस्सी से छोडे गये बछडे को देखा है वही इस आज़दी के आनन्द को समझ सकता है।

परन्तु यह आनन्द हमें यूँ ही नहीं मिल जाने वाला है। संत पौलुस अपने जीवन के अंत में इस आनन्द व मुक्ति के मुकुट को पाने की अभिलाषा रखते हुए कहते हैं – “अब मेरे लिए धार्मिकता का वह मुकुट तैयार है, जिसे न्यायी विचारपति प्रभु मुझे उस दिन (न्याय के दिन) प्रदान करेंगे।”

परन्तु उस मुकुट को प्राप्त करने के लिए वे कहते हैं – उन्हें एक अच्छी लडाई लडनी पडी, उन्हें एक दौड पूरी करनी पडी, और वे पूर्ण रूप से उन सब बातों में वफादार व ईमानदार रहे जिसे प्रभु ने उन्हें सौंपा था। जी हाँ, प्यारे मित्रों, हमें भी हमारे इस दुनियाई जीवन में एक अच्छी लडाई लडनी है। अपने मित्रों व परिजनों से नहीं बल्कि शैतान और उसकी ताकतों से जैसा कि एफेसियों को लिखे पत्र 6:12 में संत पौलुस स्वयं कहते हैं – “हमें निरे मनुष्यों से नहीं, बल्कि अंधकारमय संसार के अधिपतियों, अधिकारियों तथा शासकों और आकाश के दुष्ट आत्माओं से संघर्ष करना पडता है।’’

और आगे संत पौलुस हमें बताते हैं कि हमें कैसे शैतान व उसकी सारी शक्तियों को कुचलना है। उसके लिए हमें आध्यात्मिक हत्यारों से अपने को लेस करना है। ये हत्यार हैं – सत्य, धार्मिकता, सुसमाचार का उत्साह, विश्वास, तथा ईश्वर का का वचन।

पहले पाठ में जिन्हें प्रभु पर श्रद्धा रखने वाले लोग कहा गया है वे वही लोग होंगे जो अपने जीवन संघर्ष में इन अध्यात्मिक हत्यारों का उपयोग करते हुए हमेशा, शैतान का सामना करते हैं और कभी भी उसकी अधीनता स्वीकार नहीं करते। वे सब अंत में महिमा और सम्मान का मुकुट प्राप्त करेंगे। ऐसे लोगों को अंत समय का डर नहीं सताता, वे तो संत पौलुस की तरह बडी उत्सुकता से उस महिमामय समय की राह देखते रहते हैं। हम अपने आप से पूछें, क्या हम संत पौलुस की तरह हमारे अंत का इंतजार करते हैं या फिर हमारे अंत की खबर हमें विचलित कर देती है? आमेन।